Bachendri pal biography in Hindi: बछेंद्री पाल लगभग 13 वर्ष की थी और आठवीं की परीक्षा अच्छे अंको से पास किया था। इनके जीवन मे काफी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, फिर भी अपनी मेहनत और लगन से उसने संस्कृत में एम. ए. और बी.ए.डी.की शिक्षा हासिल की। पाल को बचपन से ही पहाड़ों पर चढ़ने का बहुत ज्यादा शौक था। साल 1984 में जब भारत का चौथा एवरेस्ट अभियान शुरू हुआ था तो दुनिया में तब सिर्फ 4 महिलाएं एवरेस्ट की चढ़ाई में कामयाब हो पाई थी। साल 1984 के इस अभियान को जो टीम बनी उसमें बछेंद्री पाल समेत सात महिलाओं और 11 पुरुषों को शामिल किया गया था।
बछेंरी पाल की जीवनी | Bachendri Pal Biography in Hindi
बछेंद्री पाल का जन्म उत्तरांचल के चमोली जिले में बंपा गांव में 24 मई 1954 को हुआ था। इनकी माता का नाम हंसादेई नेगी और पिता का नाम किशन सिंह पाल था। बछेंद्री अपने माता-पिता के तीसरी संतान थी। पाल को पढ़ाई में बहुत ही मन लगता था, जबकि इनके पिता पढ़ाई का खर्च उठाने में असमर्थ थे। जिसके कारण उनके पिता उनको आगे नही पढ़ना चाहते थे, लेकिन बछेंद्री पाल ने आठवीं कक्षा से अपना खर्च खुद उठाने लगी, उसने अपनी पढ़ाई का खर्च सिलाई कढ़ाई करके पूरी करने लगी, जबकि उसने ऐसी कठिन स्थितियों के बावजूद भी उसने संस्कृत में एम. ए. और बी.ए.डी.की शिक्षा हासिल की। बछेंद्री पाल को बचपन से ही पहाड़ों पर चढ़ने का शौक था। आप जानते है कि 1984 में जब भारत का चौथा एवरेस्ट अभियान शुरू हुआ दुनिया में तब सिर्फ 4 महिलाएं एवरेस्ट की चढ़ाई में कामयाब हो पाई थी। 1984 के इस अभियान को जो टीम बनी उसमें बछेंद्री पाल समेत सात महिलाओं और 11 पुरुषों को शामिल किया गया था।
बछेंद्री पाल का बचपन
बचपन से ही बछेंद्री ने निश्चय कर लिया था कि मैं अपने परिवार में किसी से पीछे नहीं रहूंगी, वह एक बहुत ज्यादा स्वप्न दृष्टा वाली थी, उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि कोई चीज मेरी पहुंच से बाहर होगी। 10 साल की आयु में ही वह जंगलों और पहाड़ी ढलाऩो पर शाम के समय अकेली घूमती थी और प्रकृति के साथ में स्वतंत्र होकर निडर होकर खेला करती थी। बसंत के दिनों में बचेंद्री पाल जी उन प्रवासी पंछियों के झुंडो को देखने के लिए चुपचाप अपने घर से बाहर निकल जाती थी, जो सर्दियों में मैदानों में रहते थे। बछेंद्री पाल का परिवार बहुत गरीब था और उनके माता-पिता इस बात से बहुत दुखी थे कि उनके बच्चे ऐसे सपनों की दुनिया में रहते है, जो कभी साकार नहीं हो सकते। लेकिन फिर भी परिवार के छोटे सदस्य मे कल्पनाओं में बहुत आनंद लेते थे।
पाल अपने परिवार में कहती थी कि इंतजार करो मैं तुम्हें सब कुछ करके दिखा दूंगी। वह पढ़ाई में काफी अच्छी थी लेकिन खेलकूद में और भी बेहतर जिन जिन खेलों में उसने भाग लिया उसमें प्रथम ही रही और मैदानी खेलों में जैसा कि डिस्क फेंक व लंबी दौड़ और गोला फेंक में उसने बहुत सारे कप जीते।
पूरा नाम
बछेंद्री पाल
जन्म दिन
24 मई 1954
जन्म स्थान
उतरकशी उतराखंड
पिता का नाम
किशन सिंह पाल
माता का नाम
हंसादेई नेगी पाल
शिक्षा
एम ए और बी एड
स्कूल का नाम 1
डी ए वी पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज देहारादून
स्कूल का नाम 2
नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग (NIM) उतरकशी उतराखंड
अवार्ड
पदम श्री और अर्जुन पुरस्कार
बछेंद्री पाल का नाम क्यो प्रसिद्ध है
बछेंद्री पाल लगभग 13 वर्ष की थी और आठवीं की परीक्षा अच्छे अंको से पास किया था तभी उनके पिताजी ने कहा कि वे अब स्कूल में भेजने का खर्च नहीं उठा सकते और अब तुम्हे घर के काम में मदद करनी चाहिए। बछेंद्री पाल अपने मन में बिठा लिया था कि मैं बहुत पढ़ाई करूंगी इसलिए उसने दिन के समय ना केवल अपने हिस्से का काम बल्कि उससे कहीं ज्यादा घर का काम करती थी और अपने मित्रों से स्कूल की किताबें उधार लेकर देर रात तक पढ़ती थी। उनकी यह उत्साह देखकर हर आदमी प्रभावित था और अंत में उनकी मां और बहन ने पिताजी से आगे पढ़ाने की बहुत देर तक बातें चलाती रही और पिताजी मान गए और उन्हें नौवीं कक्षा में दाखिल लेने की अनुमति मिल गई।
प्रारम्भिक जीवन काल
बछेंद्री पाल ने सिलाई का काम सीख लिया और सलवार कमीज के सूट सिल कर पांच से छह रुपये रोज का कमाने लगी उच्च शिक्षा प्राप्त करना उनका पहला सपना था इसलिए उन्होंने पर्वतारोहण की अपनी इच्छा को रोक कर रखा, जब उन्होंने m.a.और B.Ed कर लिया था। फिर अपने सपनो का पर्वतारोहण का अभ्यास शुरू कर दिया।
घर में खाली बैठने की वजाय उन्होंने नेहरू संस्थान के पर्वतारोही कोर्स शुरू किया और वहां बर्फ और चट्टानों पर चढ़ने के तरीके का अभ्यास किया और रैपलिंग करना सिखा रैपलिंग का अर्थ है ऊची चट्टान अथवा हिमखंड से एक नाईलोन की रस्सी के सहारे कुछ ही क्षणों में नीचे आना।
पाल ने चट्टान बर्फ और हिमखंड पर चढ़ने की और अधिक तकनीकी सीखें और अभियान को आयोजित करने का भी प्रशिक्षण दिया।
अधिक से अधिक ऊंचाई के रूप में उन्होंने ब्लॉक पिक अथवा काला नाग 6387 की चढ़ाई की इस कोर्स में भी ए ग्रेड हासिल कर लिया और अभियानों में भाग लेने के लिए उनकी संस्तुति की गई।
उनके प्रशिक्षक कहते थे कि उनके अंदर अच्छा पर्वतारोही के लक्षण है, जब बछेंद्री पाल ने सुना कि इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन (आई. एम. एफ.) ने 1984 में होने वाले एवरेस्ट अभियान के लिए आयोजित जांच शिविर के लिए मुझे चुना है तो उन्हें खुशी का ठिकाना नहीं था, जैसे एक बदली हुई इंसान बन गई अपने आप को मजबूत बनाने के लिए घास चारे और सूखी लकड़ी के भारी से भारी गट्ठर घर लाने लगी।
बछेंद्री पाल प्रतिदिन ज्यादा रास्ता चलने लगी, अधिक दुर्गम रास्तों और घाटियों से होकर निकलती और जानबूझकर पत्थरों के ऊपर से चलती अथवा सीधी खड़ी ढलानो चट्टानों से उतरती जिससे कि मैं बेहतर संतुलन प्राप्त कर सके और ऊंचाई के डर को निकाल सके।
मई 1984 तक आरोहन योजना को शुरू करने की पूरी तैयारी हो चुकी थी, और 8 मई को साउथ कोल पहुंचकर 9 मई को चोटी पर पहुंचने का प्रयास करना था।
बछेंद्री पाल का जीवन काल
9 मई को उन्होंने प्रात:7:00 बजे शिखर कैंप से प्रस्थान किया और 16 मई को प्रात:8:00 बजे तक वह कैंप पहुंच गई थीं। उन्होंने अगले दिन की महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी थी और सुबह 6:20 मिनट पर अंग दोरजी और बछेंद्री पाल साउथ कोल से बाहर निकले तो दिन ऊपर चढ़ आया था और हल्की हल्की हवा चल रही थी लेकिन ठंड भी ज्यादा थी, फिर भी बगैर रस्सी के ही चढ़ाई की। जमी हुई बर्फ की सीधी व ढलाऊ चट्टाने इतनी मजबूत थी कि मानो शीशे की चादर बिछी हो। जबकि उन्हें बर्फ काटने में फावड़े का इस्तेमाल करना पड़ा और उन्होंने फावड़े का बहुत तेजी से इस्तेमाल किया और बर्फ कट गया 2 घंटे से कम समय में ही हम शिखर कैंप पर पहुंच गए।
अंग दोरजी ने कहा कि पहले वाले दल को तो शिखर कैंप पर पहुंचने में 4 घंटे लगे थे और हम इसी गति से चलते रहे तो हम शिखर पर दोपहर 1:00 बजे ही पहुंच जाएंगे।
उनकी सांसे मानो रुक गई थी, उन्हें लगा कि यह सफलता बहुत नजदीक है। 23 मई 1984 के दिन दोपहर के 1:07 पर उन्होंने एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने वाली प्रथम भारतीय महिला बछेंद्री पाल जी थी। उन्होंने अपने घुटनों के बल बैठी बर्फ पर अपने माथे को लगाकर सागर माथे के ताज का चुंबन किया और बिना उठे ही अपने बैग से दुर्गा मां का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला लाल कपड़े में लपेटा छोटी सी पूजा अर्चना की और बर्फ में दबा दिया फिर उन्हे अपने माता-पिता का ध्यान आया।
बछेंद्रीपाल जी शिखर पर 43 मिनट बिताए और फिर चोटी के समीप एक छोटे से खुले स्थान से पत्थरों के कुछ नमूने एकत्र किए और अपनी वापसी यात्रा शुरू कर दी।
बछेंद्री पाल का अवार्ड
बछेंद्री पाल जी को पर्वतारोहण में श्रेष्ठा के लिए भारतीय पर्वतारोहण संघ का प्रतिष्ठित स्वर्ण पदक तथा अनेक सम्मान और पुरस्कार प्रदान किए गए पदम श्री और अर्जुन पुरस्कार घोषणा की गई।
निष्कर्ष
हम आपसे उम्मीद करते हैं कि Bachendri Pal Biography in Hindi लेख को आपको पढ़कर पसंद और आनंद आया होगा। इस लेख से संबंधित अगर आपका कोई भी राय या सवाल है तो आप हमे कमेंट करके पूछ सकते हैं। आपको इस लेख को पूरी पढ़ने के लिए दिल से धन्यबाद। अगला लेख आपके बीच बहुत ही जल्द आएगा।
अगला लेख आपके बीच बहुत ही जल्द आएगा। कृपया “DND EDUCATION NEWS” को फॉलो करें।
FAQs
बछेंद्री पाल के जीवन में क्या बुरे समय ने दस्तक दी?
बछेंद्री पाल के जीवन मे बुरे समय की दस्तक उस वक्त आई जब वे M.A. और B.Ed. कर घर लौटी।
बछेंद्री पाल क्या करना चाहती थी?
बछेंद्री पाल एक डॉक्टर बनना चाहती थी, इसलिए उन्होने बायोलोजी ली और बाद आर्ट की।